हर साल जाड़ों में पिस्ते-बादाम बेचने कलकत्ता आने वाला, टूटी-फूटी बंगाली बोलने वाला, रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी ‘काबुलीवाला’ का नायक रहमत किसे याद नहीं होगा। पांच साल की उस छोटी सी बच्ची को भी कोई नहीं भूल सकता जिसके भीतर रहमत को अपने सुदूर देश में रहने वाली अपनी बेटी दिखाई देती थी। फ़राख़दिली और मोहब्बत से भरपूर इस कहानी में अफ़गानिस्तान और भारत के पुराने संबंधों की मीठी मिसालें मौजूद हैं।
इन पुराने संबंधों के निशान हमारे मुल्क में कितनी ही जगहों पर, कितने ही रूपों में उकेरे मिलते हैं। उनकी गर्मी से मानवीयता पर यकीन पुख्ता होता है। ऐसी ही एक मिसाल मास्टर अज़ीज़ के नाम से याद किये जाने वाले अब्दुल अज़ीज़ की भी है।