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हर बिजनेस एक प्लान से शुरू होता है, बिजनेस प्लान के तहत बिजनेस को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का सपना हर कारोबारी का होता है। सभी कारोबारी का बिजनेस प्लान उनके अनुसार शानदार होता है। हालांकि कई बार बिजनेस को सहारा देने के लिए बिजनेस लोन की आवश्यकता होता है। बिजनेस का विस्तार करने के लिए धन जुटाने का लाइन ऑफ क्रेडिट एक अन्य तरीका है।  

लाइन ऑफ क्रेडिट के तहत कारोबारी बिजनेस की आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। क्रेडिट ऑफ़ लाइन और बिजनेस लोन दोनों ही लोन प्रोडक्ट हैं लेकिन दोनों में कुछ असमानताएं भी हैं। लघु उद्योग लोन आम तौर पर बिजनेस की किसी एक जरूरत के लिए दिया जाने वाला लोन है। लाइन ऑफ़ क्रेडिट कारोबारी को क्रेडिट की लिमिट तक अपने मनमुताबिक और जरूरत के मुताबिक खर्च करने की आजादी देता है।  

बिजनेस लोन पाने के लिए कारोबारी को कुछ जरूरी पात्रता पूरी करना होता है। इन पात्रता में शामिल होता है – बिजनेस कम से कम 2 साल पुराना होना चाहिए, एक निश्चित रकम तक वार्षिक टर्नओवर होना चाहिए, आईटीआर फाइल होना चाहिए, घर या बिजनेस की जगह में से कोई एक खुद के नाम पर होना चाहिए इत्यादि। लाइन ऑफ़ क्रेडिट में पात्रता अलग होती है जैसे- लाइन ऑफ़ क्रेडिट कार्ड पाने के लिए कारोबारी को अपना सिबिल स्कोर यानी क्रेडिट स्कोर बेहतर बनाएं रखने की जरूरत होती है। बेहतर इनकम होना चाहिए और इनकम सोर्स भी दिखाना होता है। 

बिजनेस के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट का लाभ  

धन की समय पर उपलब्धता- सफल बिजनेस की कुंजी सही समय पर फंड की उपलब्धता होती है। सही समय के लिए और सही खर्ज को पूरा करना अतिआवश्यक होता है। इस आवश्यकता को समझते हुए, लाइन ऑफ क्रेडिट को इस प्रकार बनाया गया होता है कि कारोबारियों को तत्काल क्रेडिट मिल जाता है। जिससे कारोबारी बिजनेस की जरुरतों को पूरा करने में सक्षम बन पाते हैं। वहीं बिजनेस लोन मे कभी-कभी महीनों लग जाते थे। 

सही समय पर सही लोगों तक पहुंच 

बिजनेस लोन के लिए आवेदन करते समय कारोबारी को कुछ जरुरी कागजात लोनदाता के यहां जमा करना होता है। इसके साथ ही लोन की पात्रता को भी पूरा करना होता है। लोन देने वाली कंपनी पहले कारोबारी के आवेदन पर विचार करता है, कागजातों को चेक किया जाता है फिर लोनो देने या नहीं देने का निर्णय किया जाता है। तब तक कारोबारी के लिए बहुमूल्य समय निकल जाता है। इसके ठीक उलट लाइन ऑफ क्रेडिट में कारोबारी को एक तय लिमिट दे दी जाती है। उस लिमिट में कारोबारी जब चाहें तब जरुरी सामान खरीद सकते हैं।  

वर्किंग कैपिटल मैनेज करने में सहायता 

किसी भी बिजनेस का संचालन करने के लिए वर्किंग कैपिटल अतिमहत्वपूर्ण होता है। बहुत से बिजनेस का वर्किंग कैपिटल खत्म हो जाता है और कारोबारी को पता भी नहीं चलता है। इसके बाद कारोबारी के सामने वर्किंग कैपिटल लोन लेने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होता है। इसके ठीक उलट क्रेडिट ऑफ लाइन में कारोबारी के पास हर वक्त एक कैश लिमिट होता है। जिसका उपयोग कारोबारी वर्किंग कैपिटल को मैनेज करने के लिए करता है। जिससे वर्किंग कैपिटल बराबर बना रहता है। 

बड़ी मांग के लिए कच्ची सामग्री खरीदना 

बहुत बार होता है कि कारोबारी के पास कोई बड़ा ऑर्डर आ जाता है। जिसको पूरा करने पर मोटा मुनाफा होने की संभावना होती है। लेकिन दिक्कत तब होती है जब उस ऑर्डर को पूरा करने के लिए अधिक कच्ची सामग्री की आवश्यकता होती है। तत्काल में बिजनेस लोन लेना संभव नहीं होता है। तो इस कंडिशन में भी क्रेडिट ऑफ लाइन सहायता करता है। 

निष्कर्ष के रुप में देखें तो लाइन ऑफ क्रेडिट एमएसएमई कारोबारियों के लिए बहुत ही सहायक साबित होता है। बिजनेस लोन अपनी जगह पर ठीक है, जिसका उपयोग बिजनेस का विस्तार करने के लिए किया जाता है। लेकिन लाइन ऑफ क्रेडिट का उपयोग बिजनेस की रोजाना आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। 

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