पुष्यभूति भगवान हर्षवर्धन के निधन के बाद, भारत की राजनीतिक एकजुटता फिर से टूट गई और देश के विभिन्न हिस्सों में छोटे राज्यों की स्थापना हुई। इन राज्यों के नेता राजपूत थे। यही कारण है कि इस काल को ‘राजपूत-युग' कहा जाता है। यह अवधि 648 ईस्वी में हर्ष के निधन के साथ शुरू होती है और 1206 ईस्वी में भारत में एक मुस्लिम क्षेत्र की नींव के साथ समाप्त होती है। यही कारण है कि भारतीय इतिहास ( Prachin Bharat Ka itihas )में 648 ईस्वी से 1206 ईस्वी तक के काल को ‘राजपूत-काल' कहा जाता है।
राजपूत काल का महत्व
भारतीय इतिहास में राजपूत काल का अतुलनीय महत्व है। इस अवधि में भारत पर मुसलमानों के हमले शुरू हुए। लगभग साढ़े पांच सौ वर्षों तक, राजपूत सेनानियों ने साहस और दृढ़ता के साथ मुस्लिम अतिचारियों का सामना किया और देश की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना जारी रखा। इस तथ्य के बावजूद कि उन्हें अपरिचित घुसपैठियों द्वारा लंबे समय तक कुचल दिया गया था, हालांकि उनके द्वारा लगभग छह शताब्दियों तक दी गई सहायता भारत के पूरे अस्तित्व में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। राजपूत शासकों में ऐसी असामान्य विशेषताएं थीं, जिसके कारण उनकी प्रजा उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखती थी। राजपूत चैंपियन अपने वादे पर कायम था और उसने किसी को धोखा नहीं दिया। उसने शत्रु की ओर मुंह नहीं किया। वह एक ही समय में अग्रिम पंक्ति में निडर होकर जूझते हुए पीड़ित होना चाहता था। राजपूत चैंपियन ने एक निहत्थे विरोधी पर हमला करना और अतुलनीय धर्म के रूप में बहिष्कृत को सुनिश्चित करना एक असाधारण पाप माना। वह लड़ाई के प्रशंसक थे और अग्रिम पंक्ति उनकी कर्मभूमि थी। वह देश के पहरेदारों का पूरा भार वहन करते थे। आइये जानते है भारत में राजपूतों का उदय का इतिहास