TUSHAR GARG's articles

वो जो रात थी सà¥�याह काली ज़à¥�लà¥�फ़ों सी उलà¤�नों में अटकी हà¥�ई जो शाम की बहकती डोर भागती रोशनी को ढककर देकर भगाती हà¥�ई सी लग रही थी कà¥�छ तेरी ही तरह थी जैसे तू जैसे तू नाव में बैठकर हर रोज़ जैसे à¤�क नया साहिल ढूंढने निकल पड़ती थी पर ये जो गंगा है […]
सूरज की रोशनी में अटककर जब उम्मीद की पहली किरण जब चपक से रात भर की नींद का नशा सम्हाले अंधेरे में से सुबह खंगालने को बेताब पलखों पर जब पड़ती है तो एक दफ़ह तो आंखें तिलमिला जाती हैं और तभी तू अपना आँचल लिए अपने घीले, फूलों से महकते बालों को बस यूं […]
कभी कभी जब कहीं हवा के ज़ोर से किसी पेड़ की कच्ची टहनी जब झुक जाती है तो अक्सर लोग समझते हैं की कमज़ोर है बेचारी हवा की पीड़ा से नहीं पायी पर भूल जाते हैं कि जो टहनी बचपन में ही झुकना सीख लेती है वहीं अक्सर तूफानों से लड़ने का माद्दा पैदा कर […]
या तो ये वक़्त ऐसा है की जिधर में चल चला इसने उधर ही मुझसे मुँह मोड़ लिया या इत्तेफ़ाक़ शायद पर क्या खता मेरी की कुएँ तक आकर भी बैरंग वापस हो लिए न प्यास बुझी न तिलमिलाहट बस वक़्त बेवक़्त समय को कोसना जैसे आदत में शुमार हो गया अजीब वक़्त था अजीब […]
रात की सुरमयी सी कालिख लिए चांदनी जब आंखों पे आ टपकती है तो याद बहुत तुम आते हो तो याद बहुत तुम आते हो सर्दी की ठिठुरन भी जब रूह दबोच लेती है तो याद बहुत तुम आते हो तो याद बहुत तुम आते हो बसंत की ठंडी पुरवाई जब धरती पे छपक छपक […]
कुछ महकती भी है कुछ बहकती भी है सुबह की बुलबुल की किलकारियों सी ज़ेहन में हर लम्हा चहकती भी है इतराती भी है बलखाती भी है शरारतों से मुझे कभी कभी सताती भी है सोचता हूँ कि कह दूं कि इश्क़ है तुझसे पर न जानें क्यों डर सा लगता है कहीं वो ये […]
ख्वाइशों के बोझ तले दफ़्न एक हल्की सी चीख कानों तक पहुंचती है पल भर में ही वो जैसे गाथा अपनी कह जाती है मेरी ही गाथा थी वो पर अब अपनी सी लगती नहीं फिर न जानें क्यों खुद से कहता हूं मैं की तेरी कोई गलती नहीं दब जाती है फिरसे वो सही […]
कुछ अलग थी वो इस जहाँ की तो नहीं थी उसका होना जैसे एक सबूत था उस जहाँ की मौजूदगी का जहाँ किसी आडम्बर की जगह नहीं इंसान जो चाहता है वो करता है बेखौफ्फ़ बेझिझक किसी दूसरे की खुशी से ईर्ष्या की वहां कोई जगह नहीं बस उसी जहां से थी वो आम लड़कियों […]
यह हवा यह हवा बड़ी बेसब्र है पहाड़ों से होकर गुजरती है तो बर्फ की नमी सोख लेती है रह जाती है तो बस बेजान बर्फ कठोर और नीरस जो न मन को हर्षित करती है न आंखों की चमक बढ़ाती है सब इस हवा की करामात है यह वही हवा है जो पहाड़ों की […]
बहुत कुरेदा खुद को आज कुछ सवाल थे खुद से जवाब कहीं और मिला नहीं वक़्त बीता तो समझे कि जवाब यहीं कहीं है बस शायद नाउम्मीदी की जो धूल पहाड़ बनकर इरादों पर बोझ बनकर बैठी है गले की फांस हो जैसे न आवाज़ निकलती है न दर्द बयाँ होता है आह भी बस […]
लोग कहते हैं खंडरों में कुछ बस्ता नहीं पर शायद गुमाँ नही उन्हें इनकी भूली बिसरी आधी अधूरी टूटी फूटी दीवारों के बीच खिलखिलाती जोड़ियों की आशिक़ी धूप से थककर सुकून की तलाश में बेचैन राही का सुकून और एक और चीज़ है जो खास है पुराने दोस्तों की बातें जो आफ़िस के चक्कर और […]
कुछ रूठा रूठा सा आसमान कुछ सिकुडती सी ज़मीन कुछ बिलखते से बादल कुछ आंखों की नमी ज़ुबाँ कुछ उगलती नहीं पर गम से वाकिफ़ हर कोई बस उन्हें ही ख़बर नहीं पर हमें गिला भी नहीं इश्क़ फुरसत से और शिद्दत से हुआ करता है ज़ोर ज़बरदस्ती से नहीं।। Original link
न जाने क्यों रुख मोड़ कर यूँ झुकी झुकी सी नज़रें लिए मुह फेर कर खड़ी है ज़िन्दगी आंसू सूख कर सफेद हुए गाल भी शायद मेरे स्पर्श को आतुर हैं पर मुझसे खफा है आज ज़िन्दगी न जाने क्यों पीछे कदम करता हूँ तो आवाज़ गूंजती है उसकी पलट के देखूं  तब तक ओझल […]
कभी कभी कवि को जब  कल्पना का अभाव अखरता है तो शायद  ज़िन्दगी ज़िम्मेदारी ले लेती है परीक्षा से गुज़ारने की पल दर पल तांता से लगा रहता है तकलीफें दिक्कतें हौंसले से जैसे कबड्डी खेलने को उतारू हों पर एक अकेला हौंसला कब तक लड़ेगा और किस किस्से लड़ेगा है तो फिर इंसान का […]
आज फिर एक दफ्न याद की कोख से  का अंकुर फूटा मानों धरती के आगोश में एक ज्वालामुखी छुपा हो जो फट पड़ा हो जब उसके सब्र का बांध डगमगा गया हो यही होता है अमूमन Original link
एक वक्त का बुलबुला था न जाने कब  और कैसे ख्वाइशों के सूखे में वो एक उम्मीद का सूराख छोड़ गया वो सूराख जिससे इश्क़ के इत्र की खुशबू धीमे धीमे से सरककर दिल-ओ-दीमाग तक पहुंचती है कुछ बिजली सी कौंधती है धड़कनें तीतर हो उठती हैं और मन बेचैन और उसी वक़्त कुछ सूरज […]
चुपके से कभी धीमे धीमे से कभी यूँ सांझ ढले कभी पास आती ज़िन्दगी कभी ठंडी रातों की गर्माहट ज़िन्दगी कभी उगते सूरज की लालिमा ज़िन्दगी कभी बेआवाज़ आती बारिश की आवाज़ ज़िन्दगी कभी तन्हा शामों का अहसास ज़िन्दगी इस कदर तू आती है की सब कुछ थामकर भी कुछ खोना मुनासिब होता नहीं खुशियां […]
तुझको ये पहला खत लिख रहा हूँ इश्क़ की पहली जैसे आयत लिख रहा हूँ कल की यतीम रात का सबब लिख रहा हूँ उफ़क का अपने तुझे अब्र लिख रहा हूँ खुदी को तेरे कदम लिख रहा हूँ तलावतों में तेरी मुहब्बत पड़ता हूँ तसव्वुर में तेरा अक्स देख रहा हूँ मजलिस ए शाम […]
आज की सुबह  कुछ नया लेकर आई थी कल की शिकन की लकीरें कहीं खो चुकी थीं रह गयी थी तो बस एक ख्वाईश कि या तो उन्हें अपने ऊन्स का अहसास करा जाएं या तो वो अपने ऊन्स में गिरफ्तार हो जाएं आसां तो नहीं है पर इश्क़ है अब आग के दरिया में […]

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