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POST HIGHLIGHT

प्लेटो के शिष्य अरस्तू को ही राजनीतिक विज्ञान का जनक Aristotle Father Of Political Science, होने का गौरव प्राप्त है। अरस्तू ही एक ऐसे व्यावहारिक राज्य का विचार देने वाला प्रथम वैज्ञानिक है जो प्लेटो से अधिक महत्वपूर्ण, उपयोगी व वास्तविकता पर आधारित विचारों का खजाना है। मैक्सी ने अरस्तू को ही प्रथम वैज्ञानिक विचारक First Scientific Thinker माना है। इनिंग अरस्तू की कृति ‘पालिटिक्स’ Politics को राजनीति विज्ञान की अनुपम निधि मानता है। यद्यपि प्लेटो ने भी राजनीति पर विचार किया था लेकिन उसके विचार अरस्तू की तरह यथार्थवादी नहीं हैं। अरस्तू ने राज्य, क्रान्ति, संविधान, सरकारों के वर्गीकरण और परिवर्तन, नागरिकता State, Revolution, Constitution, Classification and Change of Governments, Citizenship आदि पहलुओं पर जो विचार प्रकट किए हैं, वे आज भी समसामयिक और प्रासंगिक हैं।

प्लेटो के शिष्य अरस्तू को ही राजनीतिक विज्ञान का जनक Aristotle Father Of Political Science, होने का गौरव प्राप्त है। प्लेटो की तुलना में अरस्तू के विचार अधिक शाश्वत मूल्य Eternal value के हैं। आधुनिक राजनीति विज्ञान का क्षेत्र उन्हीं सिद्धान्तों पर टिका हुआ है जो अरस्तू ने हजारों वर्ष पूर्व प्रतिपादित किए थे। राजनीति विज्ञान का वर्तमान ढाँचा अरस्तू की ही परिकल्पना पर आधारित है। अरस्तू के विचारों में जितनी सजीवता परिपक्वता Survival Maturity और स्थायित्व है, उसके आधार पर ही अरस्तू को राजनीति विज्ञान का जनक माना जाता है।

प्लेटो को यह श्रेय प्राप्त क्यों नहीं है?

प्लेटो ने भी राजनीति विज्ञान को कुछ महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन उसे राजनीति विज्ञान का जनक नहीं कहा जा सकता। इसके कुछ कारण निम्नलिखित हैं :-

 

1. राजनीतिशास्त्र के अध्ययन में प्लेटो ने वैज्ञानिक पद्धति Scientific Method का प्रयोग नहीं किया है। प्लेटो का नगर राज्यों की समस्याओं की ओर दृष्टिकोण अवैज्ञानिक है। वह कल्पना के आधार पर समस्याओं का समाधान करना चाहता है। वह एक चित्रकार की तरह आदर्श प्रस्तुत करता है। उसके विचारों का वास्तविक जीवन से कोई सरोकार नहीं है। उसके विचार तत्वों के निरीक्षण व परीक्षण पर आधारित नहीं है। अतः प्लेटो को राजनीति विज्ञान का जनक नहीं माना जा सकता।

2. प्लेटो ने राजनीति शास्त्र को स्वतन्त्र अनुशासन के रूप में प्रतिष्टित नहीं किया। उसने राजनीतिशास्त्र को नीतिशास्त्र Ethics to Political Science की एक उप-शाखा Sub-Branch माना है।

3. प्लेटो ने तत्कालीन ज्ञान-प्रणाली Contemporary Knowledge System का खण्डन किया। उसने युगों के अनुभव को मान्यता नहीं दी। उन्होंने राज्य में रीति-रिवाजो को सही स्थान नहीं दिया।

उपर्युक्त कारणों से प्लेटो को राजनीति विज्ञान का जनक नहीं माना गया। यह श्रेय अरस्तू को ही प्राप्त हुआ।अरस्तू को राजनीति विज्ञान का जनक Father Of Political Science माना गया। इसके निम्नलिखित कारण हैं

1. वानिक पद्धति Scientific Method:

अरस्तू ने राजनीतिशास्त्र के अध्ययन में वैज्ञानिक विधि का प्रयोग किया है। इस विधि में एक विचारक जो कुछ देखता है या जिन ऐतिहासिक तों की खोज करता है। उनका निष्पक्ष रूप से बिना अपने किसी पूर्वाग्रह के अध्ययन करता है और इस अध्ययन के फलस्वरूप जो कुछ निष्कर्ष निकलता है वह वैज्ञानिक होता है। बार्कर ने अरस्तू की अध्ययन-पद्धति Method Of Study के बारे में लिखा है- “उनकी प्रक्रिया का सारांश सभी संगत Relevant आंकङो का संग्रह, पंजीकरण और निरीक्षण Data Collection, Registration And Inspection करना था और प्रत्येक सन्दर्भ में उनके अध्ययन का ध्येय किसी सामान्य सिध्दान्त की खोज करना था। अरस्तु का ज्ञान विश्वकोषीय Encyclopedia of Knowledge है। उसने अपने समय में प्रचलित 158 देशों के संविधानों का अध्ययन Study Of Constitutions करने के लिए आंकड़े एकत्रित करके सामान्य निष्कर्ष निकाले हैं। उन्होंने तथ्यों का संग्रह व निरीक्षण सूक्ष्मता के करके वैज्ञानिक निष्कर्ष निकाले हैं। यही सच्चे वैज्ञानिक तरीके का सार होता है। अतः अरस्तू की पद्धति नैज्ञानिक है जो निशेष से सामान्य की ओर जाती है। इसलिए अरस्तू को राजनीति विज्ञान का जनक मानने के पीछे मूल कारण उनके द्वारा वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग है।

 

2. राजनीति को नीतिशास्त्र से अलग किया Distinguished Politics from Ethics:

अरस्तू ने सर्वप्रथम राजनीतिशास्त्र को नीतिशास्त्र में अलग करके उसे एक स्वतन्त्र अनुशासन Free Discipline के रूप में प्रतिष्ठित किया। उसके अनुसार नीतिशास्त्र का सम्बन्ध उद्देश्यों से है, जबकि राजनीतिशास्त्र का उन साधनों से है जिनके द्वारा उद्देश्यों को प्रापा किया जाता है। अरसा ने राजनीति को नीतिशास्त्र से अलग करते हुए श्रेष्ठाम विज्ञान माना है। अरस्तू ने प्लेटो के उस विचार का खण्डन किया जिसके अनुसार राजनीतिशास्त्र नीतिशास्त्र की दासी था। अरस्तू ने दोनों को ठीक तरह से समझकर यह निष्कर्ष निकाला कि राजनीति अलग विषय है। डनिंग ने लिखा है- “राजनीतिक सिद्धान्तों के इतिहास History of Political Theories में अरस्तू की सबसे बड़ी महानता इस बात में निहित है कि उसने राजनीति को स्वतन्त्र विज्ञान का स्वरूप प्रदान किया है।

3. कानून की सम्प्रभुता Sovereignty of law:

अरस्तू ने कानून की सर्वोच्चता में विश्वास व्यक्त किया है। उसके अनुसार कानून में सामूहिक विवेक Collective Conscience, अवैयक्तिकता एवं सार्वनौमिकता का गुण होता है। कानून निष्पक्ष होता है और समान रूप से आंकड़ों के सिद्धान्त की खोज करता था।” समस्याओं लागू होता है। अरस्तू विवेक के स्थान पर कानून के शासन को ज्यादा न्यायसंगत मानता है। प्लेटो आदर्श राज्य Plato's ideal state में व्यक्तियों के शासन (Philosophical Rule) में विश्वास करता है जबकि अरस्तू कानून के शासन पर करता है। अरस्तू का कहना है कि श्रेष्ठ व्यक्त्ति की तुलना में भी कानून का शासन ही उचित होता है क्योंकि यह शासक वर्ग में अनावश्यक अहंकार व सत्ता के दुरुपयोग को रोकता है तथा शासित वर्ग में हीनभावना पैदा नहीं होने देता। कानून की सर्वोच्चता तथा संवैधानिक शासन supremacy of law and constitutional rule ही वांछनीयता में विश्वास अरस्तू की ऐसी धारणाएँ जिनके आधार पर उसे संविधानवाद का जनक Aristotle Father Of Political Science कहा जाता है। अरस्तू के कानून की सम्प्रभुता के सिद्धान्त Principles Of Sovereignty के बारे में एवन्सटीन Evanstein ने लिखा है “कानून के शासन प्रदान करते हैं।

 

4. तुलनात्मक पद्धति Comparative Method:

अरस्तू ही ऐसा प्रथम विचारक है जिसने राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में तुलनात्मक पद्धति का प्रयोग किया है। उन्होने तत्कालीन नगर-राज्यों की समस्याओं का विश्लेषण करने के लिए विश्व के 158 संविधानों का अध्ययन किया। उसे निष्कर्ष तुलनात्मक होने के कारण वैज्ञानिक और सही हैं। अतः राजनीति विज्ञान के जनक के रूप में अरस्तू की पदवी राजनीतिक घटनाओं के अध्ययन में उनके द्वारा तुलनात्मक पद्धति का प्रयोग किए जाने के कारण है।

5. राज्य के पूर्ण सिद्धान्तों का क्रमबद्ध निरूपण Complete and Systematic Theory of State:

राज्य का पूर्ण सैद्धांतिक विवरण Full Theoretical Description Of the State करने वाला पहला विचारक अस्तू ही है। राज्य के जन्म और विकारा से लेकर उसके स्वरूप, संविधान रचना, सरकार का | निर्माण, नागरिकता की व्याख्या और कानून की राप्रमुता Supremacy Of Law, क्रान्ति आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर अरस्तू ने विस्तार से लिखा है। अरस्तु के ये सभी विषय । क्रमबद्ध निवेचन प्लेटो Sort Interpretation Plato तथा अन्य विचारकों में दिखाई नहीं देता है। बार्कर का कहना है- “अरस्तु के विचार प्रायः आधुनिकतम हैं चाहे भले ही अरस्तू का राज्य केवल नगर-राज्य ही रहा हो। अरस्तू के राजदर्शन Aristotle's philosophy का आधार मानव-प्रकृति Human Nature बनी क्योंकि अरस्तू ने यह सिद्ध किया कि जो व्यक्ति को लिए आदर्श और श्रेयस्कर Ideal And Preferable है, वही राज्य के लिए भी है। इसी तरह अरस्तू ने मनुष्य को एक राजनीतिक प्राणी बताकर राजनीतिशास्त्र को क्रणी बना दिया है।

6. माध्यम मार्ग Golden Mean:

अरतू का मानना था कि विकारा के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा असन्तुलन है। यह,असन्तुलन चाहे राजनीतिक हो, चाहे सामाजिक हो, चाहे आर्थिक। असन्तुलन अतियों Imbalance Extremes के कारण उत्पन्न होता, है। साम्यवाद, निरंकुशता, आगिक समानता और पूंजीवाद Communism, Autocracy, Aggressive Equality and Capitalism सभी अतियों का ही रूप है। उसने कुलीनतन्त्र व भीडतन्त्र Aristocracy And Mob को, अतिवादी बताकर संयत लोकतन्त्र Moderate Democracy का मध्यम मार्ग अपनाने का सुझाव दिया। अरस्तू का विश्वास था कि मध्यवर्ग शासन को सुचारू रूप से चला सकता है। यह वर्ग ही सामाजिक व राजनीतिक संघर्ष Social And Political Struggle को समाप्त करा सकता है। उसने इतिहास से उदाहरण लेकर अपने इस तथ्य की पुष्टि की कि मध्यमवर्ग का शासन अधिक स्थायी व टिकाऊ Permanent And Sustainable होता है। उसका मानना, है कि मध्यम वर्ग ही एक ऐसा वर्ग है जो विवेक के पालन में अग्रणी होता है। यह वर्ग ही समाज में शान्ति व स्थायित्व पैदा कर सकता है। इसी कारण केटलिन ने अरस्तू को मध्यम-वर्ग का दार्शनिक कहा है।

7.सरकार के अंगों का निरूपण Determination of the organs of Government:

अरस्तू ने सरकार के तीन अंगों- नीति-निर्धारक, प्रशासकीय और न्यायिक Policy Making, Administrative And Judicial का विस्तारपूर्वक निरूपण किया है। उसने इन अंगों के परस्पर सम्बन्धों व क्षेत्राधिकार का भी वर्णन किया है। शक्ति व थक्करण Strength And Clotting सिद्धान्त’ तथा ‘नियन्त्रण और सन्तुलन Control And Balance’ सिद्धान्त में अरस्तू की ही झलक दिखाई देती है। अरस्तू के सरकार के तीनों अंग वर्तमान समय में व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका Legislature, Executive And Judiciary समान है।

Tags:

aristotle father of political science,first scientific thinker,state

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