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देश में स्टार्टअप की संख्या अब हर साल बढ़ रही है। इस दिशा में निरंतर सरकारी प्रयासों के परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2016–17 में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या 726 से बढ़कर वित्त वर्ष 2021–22 (14 मार्च 2022 तक) में 65,861 हो गई है। ये पूरे देश के लिए एक बहुत ही अच्छा संकेत है। माना कि स्टार्टअप में जोखिम ज्यादा होता है, लेकिन यदि एक बार आइडिया काम कर जाए तो वही आइडिया सफलता की नई कहानियां लिखकर इतिहास भी रच देता है। स्टार्टअप शुरू करने से पहले जो सबसे अहम चीज होती है वो है इसके लिए फंड को जुटाना। स्टार्टअप के लिए फंडिंग प्राप्त करने के बहुत सारे तरीके हैं जिनकी आपको जानकारी होना बहुत आवश्यक है। तो आज इस आर्टिकल के माध्यम से आप जान पायेंगे कि स्टार्ट-अप के लिए फण्ड कैसे जुटा सकते How to raise funds for start-up हैं और फंड जुटाने के क्या-क्या तरीके हैं। स्टार्टअप शुरू करने से पहले बहुत सारी बातों को ध्यान में रखना होता है और आने वाली समस्याओं की पहचान करनी होती है। जिनमें सबसे पहले समस्या आती है फंडिंग को जुटाने की। क्योंकि लोग बिज़नेस शुरू तो करते हैं लेकिन अधिकतर बिज़नेस, फंड न होने के कारण बंद हो जाते हैं और उनका बिज़नेस business करने का सपना अधूरा रह जाता है। किसी भी स्टार्टअप को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए पूंजी एक आवश्यक तत्व है, बिना पर्याप्त पूंजी के स्टार्टअप को बढ़ाने में समस्या आती है। कोई भी स्टार्ट्अप या बिज़नेस स्टार्ट करना और सबसे बड़ी बात इसके लिए फंड जुटाना fund raising इतना आसान नहीं है लेकिन यदि आप समझदारी से काम लेते हैं और फंडिंग प्राप्त करने के तरीके के बारे में जानकारी रखते हैं तो फिर आप अपने स्टार्ट्अप startup के सपने को पूरा कर सकते हैं और इसे बहुत आगे तक ले जा सकते हैं। मतलब आपको बस स्टार्ट-अप शुरू करने के लिए एक शानदार आइडिया की जरुरत है बाकी स्टार्टअप के लिए फंडिंग प्राप्त करने के बहुत सारे तरीके हैं तो चलिए जानते हैं उन फंड सोर्स fund Source के बारे में जहाँ से आप बिज़नेस स्टार्टअप के लिए फंडिंग जुटा सकते हैं और स्टार्टअप को आसानी से आगे बढ़ा सकते हैं।

एक व्यवसाय का जीवन चक्र Life cycle of a business

ये सवाल हर किसी के दिमाग में आता है कि स्टार्टअप को या कंपनी को अपनी शुरुआती पूँजी या पैसे कैसे मिलते हैं? क्योंकि शुरूआत कर रही नई कंपनी के पास कोई सुरक्षा पूँजी या पिछली पूँजी नहीं होती जिस पर वह निर्भर रह सके। ये बात सच भी है कि एक स्टार्टअप्स के लिए पैसा जुटाना बहुत ही कठिन काम होता है। बिज़नेस फंडिंग और किसी व्यवसाय के लिए फंडिंग के अन्य विकल्पों को समझने के लिए, सबसे पहले हम किसी व्यवसाय के जीवन चक्र के बारे में जानते हैं। दरअसल किसी व्यवसाय की लाइफ-साइकल या जीवन चक्र एक निश्चित समय में व्यवसाय में हुए सभी परिवर्तनों या प्रगति की एक श्रृंखला है। कोई भी व्यवसाय, उद्योग और लगभग सभी तरह की कंपनियों को अपने जीवन चक्र के दौरान इन निम्न पाँच अलग-अलग चरणों से होकर गुजरना पड़ता है

लॉन्च स्टेज Launch stage

लॉन्च स्टेज या इसे स्टार्टअप स्टेज के रूप में भी जाना जाता है। लॉन्च स्टेज का मतलब है जब कोई कंपनी या व्यवसाय अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए सभी कानूनी औपचारिकता या जो भी कंडीशन होती हैं एक स्टार्टअप को करने के लिए उन्हें पूरी कर लेता है। इस स्टेज में कंपनी के प्रोमोटर शुरुआत में इतना पैसा लगाते हैं कि कंपनी अपने पैरों पर खड़ी हो जाए या अपना बिजनेस शुरू कर सके। दरअसल इस स्टेज में कंपनी के प्रोडक्ट या सर्विसेज़ की बिक्री बहुत कम होती है और दूसरी तरफ कंपनी के आय स्रोत भी कम होते हैं, यही वजह है कि लॉन्च स्टेज को अधिकतर लोग सबसे जोखिम और मुश्किल भरा चरण मानते हैं।

ग्रोथ स्टेज Growth stage

जब कोई बिज़नेस लॉन्च स्टेज या अपने जोखिम-भरे स्टेज को पार कर लेता है, तो तब वह बिजनेस अपने ग्रोथ स्टेज यानी विकास के चरण में एंट्री ले लेता है। अब इस स्टेज में बिज़नेस की सर्विसेज़ या प्रोडक्ट्स की बिक्री शुरू होती है और धीरे धीरे कंपनी की मार्केट में अपनी खुद की पहचान, प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता बनने लगती है और ग्राहकों का दिल जीतने में वह धीरे धीरे कामयाब होती है। फिर अब जैसे ही कंपनी की बिक्री बढ़ती है, तो कंपनी के पास एक स्थिर आय भी आने लग जाती है और इसके साथ ही बिक्री और उसका भुगतान मिलने के बीच का समय भी कम होता जाता है। फिर बिज़नेस को मुनाफ़ा होने लगता है। अब इसके बाद कंपनी का उद्देश्य, मार्केटिंग और अपने प्रोडक्ट्स के उत्पादन में बढ़ोतरी के द्वारा अपना राजस्व बढ़ाना होता है।

शेक-आउट स्टेज Shake-out stage

शेक-आउट स्टेज यानि जब कोई बिज़नेस विकास के कई स्तरों को पार कर लेता है, तो तब वह शेक-आउट स्टेज पर पहुंच जाता है। इस स्टेज पर बिजनेस काफी आगे बढ़ चुका होता है। यहां, बिज़नेस की बिक्री तो ऊंचाई छू रही होती है, लेकिन उसकी बिक्री और राजस्व की विकास की दर कम होने लगती है। ऐसा बाजार की संतृप्ति या नए प्रतियोगियों की एंट्री के कारण से हो सकता है। हम कह सकते हैं कि शेक-आउट स्टेज में, बिज़नेस से जुड़ी लागत और खर्च काफी हद तक बढ़ जाता है और इन्हीं खर्चों की वजह से उसका राजस्व या मुनाफा कम हो जाता है। मुनाफ़े बढ़ाने के लिए, आमतौर पर बिज़नेस के खर्च में कटौती की जाती है।

मैच्योरिटी स्टेज Maturity stage

इसके बाद जो स्टेज आती है वो होती है मैच्योरिटी स्टेज। मैच्योरिटी स्टेज यानि जब बिक्री, राजस्व और मुनाफ़ा धीरे-धीरे एक निर्धारित रेशियो में मिलने लगे, तो तब बिज़नेस मैच्योरिटी स्टेज पर आ जाता है। जब बिज़नेस इस स्टेज पर आते हैं, तो वह अपने बिजनेस को और अधिक बढ़ाने की कोशिश करते हैं इसके लिए वह नयी टेक्नोलॉजी के साथ अपनी दूसरी अन्य कई ब्रांच खोलने में इन्वेस्ट करना शुरू कर देते हैं। अपने व्यवसाय में विविधता लाते हैं, और नए और उभरते बाजारों में अपने पैर पसारने की कोशिश करते है। मार्केट में अपने बिजनेस को बढ़ाने के साथ ही कंपनी की ग्रोथ काफी अच्छी होने लगती है।

डिकलाइन स्टेज Decline stage

डिकलाइन स्टेज में, बिज़नेस की बिक्री और राजस्व दोनों कम होने लगता है। इस स्टेज से यदि कोई बिज़नेस इस स्टेज से बाहर निकलना चाहता है तो उसे बहुत ज्यादा पैसे लगाने की ज़रूरत पड़ेगी, जो इस स्टेज में हर किसी के लिए संभव नहीं होता है। डिकलाइन स्टेज में कई बार दूसरे सफल व्यवसायों के साथ विलय करना पड़ जाता है या अपने काम को बंद करना पड़ जाता है।

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